शहडोल।कुछ माह पूर्व गांधी चौक में घटी घटना में बुढ़ार के सहायक जेल अधीक्षक विकास सिंह पर लगे आरोपों को लेकर काफी विवाद खड़ा हुआ था, जिसके बाद प्रशासन द्वारा उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया था। मामला न्यायालय में विचाराधीन रहा, जहां विशेष न्यायाधीश (लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012) एवं द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश शहडोल द्वारा विस्तृत सुनवाई के बाद 30 अगस्त 2025 को निर्णय सुनाते हुए विकास सिंह को सभी आरोपों से दोषमुक्त कर दिया गया।
न्यायालय ने पाया कि कथित घटना को लेकर प्रस्तुत गवाहियों और बयानों में विरोधाभास था तथा अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा कि विकास सिंह का इस प्रकरण में कोई प्रत्यक्ष दायित्व था। निर्णय की प्रति प्राप्त होने के बाद जेल मुख्यालय भोपाल ने आदेश जारी करते हुए तत्काल प्रभाव से उनका निलंबन समाप्त कर दिया।
इस पूरे प्रकरण में सबसे गंभीर सवाल पुलिस की भूमिका को लेकर उठ रहा है। स्थानीय जनमानस का मानना है कि पुलिस ने बिना ठोस सबूतों के जल्दबाज़ी में एफआईआर दर्ज कर विकास सिंह को अपराधी की तरह प्रस्तुत कर दिया। यहां तक कि जांच पूरी होने से पहले ही मीडिया में एकतरफा बयान देकर दबाव बनाया गया। अब जबकि अदालत ने साफ कर दिया है कि आरोप निराधार थे, तो क्या पुलिस उन अधिकारियों पर कार्रवाई करेगी जिन्होंने एक ईमानदार अधिकारी को बिना वजह अपमानित किया? न्यायालय ने अप्रत्यक्ष रूप से यह संकेत दिया है कि विवेचना लापरवाहीपूर्ण थी और तथ्यों के बजाय अनुमान के आधार पर दर्ज की गई थी।
अब पुनः जेल विभाग ने उन पर विश्वास जताते हुए विकास सिंह को फिर से बुढ़ार सब जेल का सहायक जेल अधीक्षक नियुक्त कर दिया है। रीवा केंद्रीय जेल अधीक्षक द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि रीवा सर्किल के अंतर्गत आने वाली जेलों में अधिकारियों की कमी को देखते हुए विकास सिंह की सेवाओं की आवश्यकता है, अतः उन्हें तत्काल कार्यभार ग्रहण करने हेतु निर्देशित किया जाता है।
विकास सिंह की वापसी से जेलकर्मियों और स्थानीय नागरिकों में संतोष का भाव है। कई लोगों का कहना है कि विकास सिंह हमेशा अनुशासनप्रिय और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी रहे हैं। उनके निलंबन के दौरान भी स्थानीय स्तर पर उनके समर्थन में आवाजें उठती रही थीं। अब न्यायालय के निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उन पर लगाए गए आरोप निराधार थे।
विकास सिंह ने बहाली के बाद कहा कि उन्होंने हमेशा कानून और नियमों के तहत कार्य किया है। कठिन समय में उन्होंने न्यायपालिका पर भरोसा रखा, और अब पुनः उसी लगन से अपनी सेवाएं देने के लिए तैयार हैं। उनकी बहाली से न केवल उनका मान-सम्मान बहाल हुआ है, बल्कि यह संदेश भी गया है कि सत्य को देर से ही सही, पर न्याय अवश्य मिलता है।