राहुल मिश्रा/शहडोल।इन दिनों जिले में पत्रकारों की बाढ़ आ गई है।सूदखोर,अपराधी,कबाडी़,रेत माफिया,भू-माफिया,कोल माफिया सोशल मीडिया का सहारा लेकर अपने आप को पत्रकार बता रहे हैं।सोशल मीडिया से डिजिटल इंडिया को बढ़ावा तो मिला लेकिन इन फर्जी पत्रकारों के लिए यह किसी वरदान से काम नहीं है।इनका एक संगठित गिरोह जिले भर में काम कर रहा है। यह पहले व्हाट्सएप पर ग्रुप बनाते हैं,उसमें सभी अधिकारी कर्मचारियों अन्य लोगों का नंबर जोड़ते हैं,और कॉपी न्यूज़ या दूसरों से खबर लिखवा कर ग्रुप में डाल देते हैं।और फिर पत्रकारिता की धाक बताते हैं।इन्हें लगता है कि पत्रकारिता का सहारा लेकर अपने गैर कानूनी कामों को यह अंजाम दे पाएंगे,पर इन्हें नहीं पता कि पुलिस के चाबुक से कोई नहीं बच पाया है।इनकी वजह से जिले भर के वास्तविक पत्रकारों की छवि में आंच रही है।
आलम यह है कि स्वार्थवास कुछ मीडिया संस्थान और पोर्टल वालों के द्वारा प्रेस कार्ड का गोरखधंधा किया जा रहा है।संबंधित मीडिया संस्थानों द्वारा चंद रूपए लेकर अनाप-शनाप तरीके से अपात्र लोगों को प्रेस कार्ड बांटा जा रहा है।वहीं प्रेस कार्ड रखने वाले अपात्र लोग पत्रकारिता की आड़ में तमाम् तरह के अवैध कारोबार को अंजाम दे रहे हैं।ऐसा नहीं है कि ऐसे लोगों के खिलाफ शासन-प्रशासन तक शिकायत नहीं पहुंच रही है।समय-समय पर इनके खिलाफ शिकायत भी पहुंच रही है,लेकिन पुलिस और प्रशासन के अधिकारी ऐसे लोगों पर सख्त कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
जिले भर में घूम-घूमकर अवैध कृत्यों को देते हैं अंजाम
फर्जी पत्रकार जिले भर में घूम-घूमकर अवैध कृत्यों को अंजाम देने के साथ ही डरा-धमकाकर लोगों से अवैध वसूली करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं।इसी वजह से जिले समेत पूरे प्रदेश में इन दिनों फर्जी पत्रकार बनने और बनाने का गोरखधंधा तेजी से बढ़ता जा रहा है।सड़कों पर दिखने वाली हर चौथी गाड़ी में से एक गाड़ी में जरूर प्रेस लोगो दिखता नजर आ जाएगा।
आईडी कार्ड भी बनवाकर दिखाते है रौब
ये फर्जी पत्रकार अपनी गाड़ियों में बड़ा बड़ा प्रेस का मोनोग्राम तो लगाते ही हैं।साथ ही फर्जी आईडी कार्ड भी बनवाकर अधिकारियों कर्मचारियों व लोगों को रौब में लेने का प्रयास भी करते हैं।कुछ संस्थाएं तो ऐसी हैं,जो एक हजार रूपए से लेकर पांच हजार रूपए जमा करवाकर अपने संस्थान का कार्ड भी बना देती है और बेरोजगार युवकों को गुमराह कर उनसे धन उगाही करवाती है,लेकिन पकड़े जाने पर वो संस्थाएं भी भाग खड़ी होती हैं।
सम्मानित पत्रकार भी अब करते हैं अपमानित महसूस
फर्जी पत्रकारों की लगातार बढ़ती संख्या से न सिर्फ छोटे कर्मचारी से लेकर अधिकारी परेशान हैं,बल्कि खुद समाज सम्मानित पत्रकार भी अब अपमानित महसूस करते नजर आते हैं।कुछ फर्जी पत्रकार तो अपनी गाड़ियों के आगे-पीछे से लेकर वीआईपी विस्टिंग कार्ड भी छपवा रखे है,जो लोग पुलिस की चेकिंग के दौरान उनको प्रेस (मीडिया) का धौंस भी दिखाते हैं। गाड़ी रोकने पर पुलिसकर्मी से बद्तमीजी पर भी उतारू हो जाते हैं।इनमे से तो बहुत से ऐसे पत्रकार हैं।जो पेशे से तो सूदखोर,भू-माफिया और अपराधी है,जिन पर न जाने कितने अपराधिक मुकदमे भी दर्ज होंगे, लेकिन अपनी गाड़ी से लेकर वीआईपी गाड़ी पर बड़ा-बड़ा प्रेस-मीडिया का स्टीकर लगाकर मीडिया को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।
अब तक सामने आ चुके हैं कई मामले
जिले में पिछले कुछ वर्षों में फर्जी पत्रकारों द्वारा अवैध वसूली, ब्लेकमेलिंग आदि के कई मामले सामने आ चुके हैं।
पत्रकारों को बदनाम कर गिरोह बनाकर चला रहे अवैध वसूली का धंधा
40 वर्षों से पत्रकारिता कर रहे जिले के वरिष्ठ पत्रकार अजय जायसवाल ने कहा कि जिले में फर्जी पत्रकारों व प्रेस लिखे दो पहिया वाहनों की भरमार है।जिले भर में ही 30 प्रतिशत वाहनों पर प्रेस लिखा है।उन्होंने कहा कि कुछ लोग गिरोह बना फर्जी पत्रकार बन अपना धंधा चला रहे हैं,जिसके कारण वास्तविक पत्रकार बदनाम हो रहे है।उन्होंने कहा कि यह फर्जी पत्रकार ज्यादातर सरकारी कार्यालयों व थानों के इर्द गिर्द घूमते हैं तथा किसी भी परेशान व्यक्ति को देख उसे लपक लेते हैं तथा काम कराने के नाम पर मोटी रकम ऐंठ खिसक लेते हैं।यही नहीं व्यापारियों व उद्यमियों को भी बिना वजह परेशान करते हैं। तथा पत्रकारिता की आड़ में यह लोग अधिकारियों को भी गुमराह करते है तथा पत्रकारिता के सम्मान जनक पेशे को बदनाम करने में लगे हैं।अगर इस पर अंकुश नहीं लगा तो जल्दी हम जिले के वरिष्ठ पत्रकार पुलिस अधिकारियों और मुख्यमंत्री जी से इस विषय पर चर्चा करेंगे कि यहां के फर्जी पत्रकारों पर इंदौर के जैसे रासुका जैसी ठोस कार्रवाई की जाए।
अजय जायसवाल वरिष्ठ पत्रकार शहडोल।
जिसके पास कोई काम नहीं होता वे पत्रकार बन जाते हैं।
पत्रकारिता आज वह पेशा बनती जा रही है जिसमें योग्यता के मापदंड हाशिए पर आ चुके हैं।जिसके पास कोई काम नहीं होता वे पत्रकार बन जाते हैं। कई तो अपने आपको जनता व प्रशासन के सामने प्रपोज करने के लिए आईडी व ब्यूरो का लेटर ले आते है। बारीकी से देखा जाए तो अधिकांश ब्यूरो को समाचार लिखने तक का माद्दा नहीं है। ऐसे हालातों में पत्रकारिता की आत्मा अयोग्यता की गोद में गिरवी रखी हुई है। समाज का नैतिक पतन तो हो ही रहा है पत्रकारिता अवैध कमाई का जरिया बनती जा रही है। अवैध कार्यों में लगे अधिकारी व नेता ऐसे अयोग्य पत्रकारों को ढाल बना रहे है। ऐसे हालातों के लिए मीडिया घरानों यानी संचालकों को भी सोचना होगा कि अपना प्रतिनिधि उन्हीं को बनाए जो काबिल हो, समाज में इज्जत हो। न कि ऐसे लोगों को जो पैसा से सब खरीदना चाहते है। तभी लोगों का खोता विश्वास मीडिया पर रह पाएगा।
अमरेंद्र श्रीवास्तव वरिष्ठ पत्रकार दैनिक भास्कर शहडोल।
यूट्यूब चैनल एवं पोर्टल बना कर खबरे प्रकाशित कर के लोगों को ब्लैकमेल करते हैं
यह समस्या केवल शहडोल की नहीं है पूरे देश की यही स्थिति है।इसके लिए मैं भारत सरकार को जिम्मेदार मानता हूं क्योंकि सरकार द्वारा सोशल मीडिया एवं यूट्यूब को लेकर कोई गाइडलाइन नहीं बनाई गई है। सरकार द्वारा सोशल मीडिया का कोई रजिस्ट्रेशन नही किया जाता है लेकिन प्रदेश की सरकार इनको विज्ञापन भी देती है।कोई रजिस्ट्रेशन ना होने का फायदा उठाकर लोग स्वयं ही यूट्यूब चैनल एवं पोर्टल बना कर खबरे प्रकाशित कर के लोगों को ब्लैकमेल करते हैं।इसलिए केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों को सोशल मीडिया के लिए गाइडलाइन बनानी चाहिए। चुनाव आयोग भी मतदान एवं मतगणना के लिए सोशल मीडिया पर काम करने वालों लोगों का कार्ड नहीं बनाता है।
रविंदर गिल वरिष्ठ पत्रकार एबीपी न्यूज़ शहडोल।
छवि धूमिल करने वाले फर्जी पत्रकारों को संगठन स्थान न दें।
शहडोल जिले में जिला पत्रकार संघ,श्रमजीवी पत्रकार संघ सहित लगभग 5 से ज्यादा पत्रकारों के संगठन कार्यरत हैं।समय-समय पर अनेक कार्यक्रम भी आयोजित करते रहते हैं।और एक्टिव भी रहते हैं।ऐसे में उनका दायित्व है कि वह ऐसे फर्जी पत्रकारों को अपने संगठन में स्थान न दें।पत्रकारों की गरिमा को बनाए रखें समाज में जो पत्रकारों का महत्वपूर्ण स्थान है वह बना रहे।
आम जनता को तो मालूम ही नहीं रहता है कि कौन पत्रकार फर्जी है और कौन वैधानिक है?
पत्रकारों के संघ तथा उपसंचालक जनसंपर्क कार्यालय,मध्य प्रदेश शासन,शहडोल को मान्यता प्राप्त पत्रकारों की सूची जारी करना चाहिए ताकि अधिकारी,कर्मचारी, व्यवसायी,उद्योगपति तथा आम जनता उनके बारे में जान सके तथा उन्हें यथोचित सम्मान दे सके।
कैलाश तिवारी समाजसेवी शहडोल।
जल्द ही जिम्मेदारों ने इस पर ध्यान नही दिया तो और भी बुरा दौर शुरु हो सकता है।
लोकतंत्र रूपी इमारत में विधायिका, न्यायपालिका,कार्यपालिका को लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तम्भ माना जाता है जिनमें चौथे स्तम्भ के रूप में मीडिया को शामिल किया गया है, किसी देश में स्वतंत्र व निष्पक्ष मीडिया उतनी ही आवश्यक व महत्वपूर्ण है जितना लोकतंत्र के अन्य स्तम्भ इस प्रकार पत्रकार समाज का चौथा स्तम्भ होता है जिसपर मीडिया का पूरा का पूरा ढांचा खड़ा होता है।जो नीव का कार्य करता है,यदि उसी को भ्रष्टाचार व असत्य रूपी घुन लग जाए तो मीडिया रूपी स्तम्भ को गिरने से रोकना कैसे सम्भव होगा,एक दौर था जब पत्रकार ने अपनी लेखनी के जरिए समाजिक हित में बड़े आंदोलन को जन्म दिया,लेकिन आज स्थितियां लगातार बदल रही हैं।पत्रकारिता पर व्यवसायिकता हावी हो गई है,जिस कारण पत्रकारिता के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है,निजी फायदे के लिए सोशल मीडिया पर फेक न्यूज भेजने का चलन बढ़ा है,जिसका सीधा असर समाज पर पड़ रहा है व समाज में पत्रकार की छवि धूमिल हो रही है।आज कुछ तथाकथित पत्रकारों ने मीडिया को ग्लैमर की दुनिया और कमाई का साधन बना रखा है अपनी धाक जमाने व गाड़ी पर प्रेस लिखाने के अलावा इन्हें पत्रकारिता या किसी से कुछ लेना देना नहीं होता क्यूंकि सिर्फ प्रेस ही काफी है गाड़ी पर नम्बर की ज़रूरत नहीं,किसी कागज़ की ज़रूरत नहीं, सभी इनसे डरते जो हैं चाहे नेता हो, अधिकारी हो,कर्मचारी हो,पुलिस हो, अस्पताल हो सभी जगह बस इनकी धाक ही धाक रहती है,इतना ही नहीं अवैध कारोबारियों व अन्य भ्रष्टाचारी अधिकारियों,कर्मचारियों आदि लोगों से धन उगाही कर व हफ्ता वसूल कर अपनी जेबों को भर कर ऐश-ओ-आराम की ज़िन्दगी जीना पसंद करते हैं।खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं,और भ्रष्टाचार को मिटाने का ढिंढोरा समाज के सामने पीटते हैं मानो यही सच्चे पत्रकार हो सभी लोग इनके डर से आतंकित रहते है तथाकथित फर्जी पत्रकार अपने अवैध क्रत्यो से जनता में सच्चे और ईमानदार पत्रकारों की छवि को लगातार धूमिल कर रहे है,जिले में फर्जी पत्रकारों के गैग ने सक्रिय रुप ले रखा है,अगर आप तनिक भी चुके तो नुकसान भी हो सकता है, यह गैंग सुबह से लेकर शाम तक जिले के आला अधिकारियों की जी हुजूरी में लगा रहता है, कार्यालयों में चक्कर काटने वाले पीड़ितों को भी यह गलत फहमी भी हो जाती है की यह लोग ही पत्रकार हैं।अक्सर लोग इनकी जद में फस जाते हैं जो भी फसा उसका कल्याण ये लोग कुछ दिनों में कर ही देते है,आपको यह पत्रकार बड़े अधिकारियों के ऑफिस के आस पास या एसपी ऑफिस के पास मडराते नजर आ जायेंगे,इस में कुछ अपराधी प्रवृत्ति के लोग भी शामिल हो गए हैं जिनकी हिस्ट्री शीट तक निकाली जा सकती है वह भी पत्रकारिता की खाल ओढ़ कर अधिकारियों को गुमराह करने में लगे हैं,जल्द ही जिम्मेदारों ने इस पर ध्यान नही दिया तो और भी बुरा दौर शुरु हो सकता है।
संदीप तिवारी (एड.)शहडोल